GM फसलें, जीएम फसलों का विकास, भारत में जीएम फसलों का विकास, जीएम फसलों के लाभ, जीएम फसलों के नुकसान, भारत में उपयोग की जा रही GM फसलें
- जीएम फसलें ऐसी फसलें हैं, जिनके जीन में बायॉटेक्नॉलजी और बायॉ इंजिनियरिंग के जरिए परिवर्तन किया जाता है। इस प्रक्रिया में पौधे में नए जीन यानी डीएनए को डालकर उसमें ऐसे मनचाहे गुणों का समावेश किया जाता है जोकि प्राकृतिक रूप से उस पौधे में नहीं होते हैं।
- पारंपरिक पौधों के प्रजनन में एक ही जीनस की प्रजातियों का संकरण करना शामिल है ताकि संतान को माता-पिता दोनों के वांछित लक्षण प्रदान किये जा सकें।
- जीनस वस्तुओं का एक वर्ग है जैसे जानवरों या पौधों का एक समूह जिसमें समान लक्षण, गुण या विशेषताएँ होती हैं।
- वांछित परिणाम प्राप्त करने में क्रॉस ब्रीडिंग में लंबा समय लग सकता है और प्रायः किसी भी संबंधित प्रजाति में रुचि की विशेषताएँ मौजूद नहीं होती हैं।
- बीटी कपास (Bt Cotton) एकमात्र जीएम फसल है जिसकी भारत में अनुमति है। इसमें जीवाणु बैसिलस थुरिंजिनेसिस (Bt) के विदेशी जीन होते हैं जो फसल को सामान्य कीट पिंक बॉलवर्म (Pink Bollworm) के लिये एक प्रोटीन विषाक्त विकसित करने की अनुमति देता है।
- हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी (Herbicide Tolerant- Ht Bt) कपास, एक अन्य मृदा के जीवाणु से एक अतिरिक्त जीन के सम्मिलन से प्राप्त होता है, जो पौधे को सामान्य हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट का विरोध करने की अनुमति देता है।
- बीटी बैंगन ( Bt Brinjal) में एक जीन पौधे को फल और प्ररोह बेधक के हमलों का विरोध करने की अनुमति देता है।
- डीएमएच-11 सरसों (DMH-11 Mustard) में आनुवंशिक संशोधन एक ऐसी फसल में पर-परागण की अनुमति देता है जो प्रकृति में स्व-परागण करती है।
जीएम फसलों का विकास
- विश्व में पहली बार जीएम तकनीक का प्रयोग तंबाकू पर 1982 में किया गया
- जीएम फूड के रूप में पहली बार फ्लेवर सेवर टमाटर को 1994 अनुमति दी जिसके अंतर्गत स्वाद तथा रंग को बनाए रखते हुए उसके जल्दी खराब होने की प्रवृत्ति को कम किया गया
भारत में जीएम फसलों का विकास
- भारत में पहली बार जीएम क्रॉप्स की शुरुआत 1996 में हुई तथा 2002 में भारत की पहली अनुवांशिक समृद्धि फसल बीटी कपास थी जिसको पहली बार व्यवसायिक उपयोग की अनुमति दी गई जो गुजरात में उत्पन्न की गई थी
- वर्तमान में भारत की कपास उत्पादन में वैश्विक भागीदारी 26% है तथा बीटी कपास को व्यवसायिक अनुमति मिलने के बाद इसके निर्यात में बढ़ोतरी हुई है यही कारण है कि भारत के कुल कपास उत्पादन में बीटी कपास का उत्पादन 95% है
- बीटी कपास के साथ-साथ बीटी बैंगन का भी विकास किया है किंतु पर्यावरण विशेषज्ञों के विरोध के चलते 2010 में इसके उपयोग की अनुमति पर रोक लगा दी गई
- वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के द्वारा सरसों की अनुवांशिक संबंधित फसल के रूप में डीएम डीएमएस 11 का विकास किया गया है जो सरसों की सामान्य प्रजाति वरुणा से 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन देने में सक्षम है किंतु अभी तक इसके व्यवसायिक उपयोग की अनुमति नहीं दी गई है वर्तमान में भारत में लगभग 12 जीएम फसलों पर अनुसंधान कार्य प्रगति पर है
- भारत में जीएम फसलों की अनुमति पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा दी जाती है
जीएम फसलों के लाभ
- जीएम तकनीक से की प्रतिरोधी क्षमता यानी फसलों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है
- जीवन तकनीकी द्वारा ऐसी फसलों का निर्माण भी किया जा सकता है जिन्हें प्रतिकूल जलवायु दिशाओं में उगाया जा सकता है
- यह बीज साधारण बीज से कहीं अधिक उत्पादकता प्रदान करता है।
- इससे कृषि क्षेत्र की कई समस्याएँ दूर हो जाएंगी और फसल उत्पादन का स्तर सुधरेगा।
- जीएम फसलें सूखा-रोधी और बाढ़-रोधी होने के साथ कीट प्रतिरोधी भी होती हैं।
- जीएम फसलों की यह विशेषता होती है कि अधिक उर्वर होने के साथ ही इनमें अधिक कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं होती।
जीएम फसलों के नुकसान
- जीएम तकनीक से प्राकृतिक खेती में संक्रमण का खतरा रहता है।
- स्वास्थ्य के लिहाज से भी जीएम फसल को बहुत अच्छा नहीं माना जाता। इसी के चलते बीटी बैंगन पर रोक लग गई थी।
- जीएम फसलों के जरिए बीजों के मामले में भारतीय किसान विदेशी कंपनियों पर निर्भर होंगे।
भारत में उपयोग की जा रही GM फसलें
- BT कपास (एकमात्र उपयोग की जा रही GM फसल )
- GM सरसों
- BT बैंगन (Disputed)
Note– दुनिया में जितनी भी जीएम फसल पैदा हो रही है उसमें सोयाबीन, मक्का, कपास, कैनोला (सरसों) का हिस्सा 99% है. बाकी 1% में आलू, पपीता, बैंगन जैसी फसलें हैं जिन्हें कुछ देश उगा रहे हैं।
FAQ
1- जीएम फसलें (Genetically Modified Crops) क्या हैं ?
Ans. जैनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा किसी भी जीव या पौधों के जीन को दूसरे पौधों में डाल कर एक नई फसल की प्रजाति विकसित कर सकते हैं।
2- कहां, कितनी जीएम फसलें?
Ans. दुनिया के कई देशों में जीएम फसलें इस्तेमाल में लाई जाती हैं। इनमें उत्तर और दक्षिण अमेरिका के अधिकांश देश शामिल हैं जहां सोयाबीन, मक्का, राई और चुकंदर आदि की जीएम फसलें उगाई और इस्तेमाल में लाई जाती हैं।